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Monday, April 28, 2014

मधुबनी: कमल और लालटेन के पीछे छूटा तीर

बिहार के महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र मधुबनी में राजनीतिक गुटबंदियों के बाद भाजपा के मुकाबले राजद का प्रत्याशी मैदान में है। कांग्रेस ने पहली बार इस क्षेत्र से अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है और वह इस बार राजद को समर्थन दे रही है। जहां एक ओर क्षेत्र में जाति और धर्म के समीकरण अपनी जगह कायम हैं वहीं प्रत्याशी अपनी पिछली साख और भविष्य के लिए किए जा रहे वादों पर उम्मीद बांधे हैं।

बिहार की मधुबनी सीट पर इस बार मुकाबला रोचक है। यहां से तीन बार सांसद रहे भाजपा के हुक्मदेव नारायण यादव को मोदी की लहर दिख रही है, वहीं आरजेडी के अब्दुल बारी सिद्दीकी को हाथ के साथ का यकीन है। वे पिछली चुनाव की शिकस्त का बदला लेने को एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। तीसरे कोण पर खड़े जदयू प्रत्याशी गुलाम गौस के पास मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विकास पुरुष की छवि और सीपीआई के समर्थन की थाती है। इस सीट पर कांग्रेस और वामपंथ का प्रभाव रहा है, लेकिन गठबंधन की वजह से इस बार न तो कांग्रेस का उम्मीदवार मैदान में है और न ही लेफ्ट का।
बिहार में मधुबनी की अपनी खास सांस्कृतिक पहचान है। यहां की पेंटिंग की देश ही नहीं विदेश में भी शोहरत है, लेकिन वर्तमान में मधुबनी की चर्चा है तो दिग्गजों की लड़ाई की वजह से। बीजेपी के हुक्मदेव नारायण यादव ने संसदीय राजनीति के अपने लंबे अनुभव को इस जंग में झोंक दिया है तो वहीं राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी ने भी अपनी मात को जीत में बदलने के लिये कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रखी है। हालांकि मितभाषी गुलाम गौस अपने सद्व्यवहार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कीविकास पुरुष वाली छवि से लड़ाई को तिकोना और धारदार बनाने में जुटे हुए हैं। यहां आम आदमी पार्टी और माले प्रत्याशियों समेत कुल ग्यारह सियासतदां लोकतंत्र के इस महापर्व में शिरकत कर रहे हैं।

वैसे मधुबनी सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। वामपंथियों का भी इस पर कम सियासी दखल नहीं रहा है। कांग्रेस ने छह बार अपनी जीत दर्ज की है तो सीपीआई और सोशलिस्ट पार्टी ने भी छह बार इस क्षेत्र पर परचम लहराया है, लेकिन खास बात यह है कि इस बार दोनों के अपने प्रत्याशी नहीं हैं। दोनों ने यह सीट गठबंधन को सौंप दी है। कांग्रेस ने राजद को समर्थन दिया है तो सीपीआई ने जदयू को।

2009 के चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और राजद तीनों ने यहां से अपने उम्मीदवार उतारे थे। बीजेपी के हुक्मदेव नारायण यादव और राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी के बीच कांटे की टक्कर हुई थी। मात्र 10 हजार मतों के अंतर ने सिद्दीकी को संसद पहुंचने से रोक दिया था। कांग्रेस के डॉ. शकील अहमद एक लाख से अधिक मत पाकर तीसरे नंबर पर थे। इस बार बीजेपी और राजद दोनों अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं। हुक्मदेव को नरेंद्र मोदी की लहर दिखाई दे रही है। लहर के उत्साह से लबरेज हुक्मदेव सुबह नौ बजे के करीब अपने घर से प्रचार में निकल जाते हैं।

सबसे मिलते-जुलते देर शाम घर लौटते हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि इस बार मोदी की लहर असर दिखाएगी। इस लोकसभा की चार विधानसभा सीटों-मधुबनी, बेनीपट्टी, जाले और केवटी पर भाजपा का कब्जा भी हुक्मदेव को मजबूती दे रहा है। केवटी सीट से हुक्मदेव के भाजपा विधायक पुत्र अशोक यादव भी पिता की जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं।

दूसरी ओर राजद के सिद्दीकी बीजेपी प्रत्याशी पर अपनी बढ़त को लेकर भरोसेमंद हैं। बगल के दरभंगा जिले के निवासी और अलीनगर से राजद विधायक सिद्दीकी को पक्का भरोसा है कि पार्टी का मजबूत आधार तो है ही, कांग्रेस के साथ का लाभ भी उन्हें हर हाल में मिलेगा। पिछले चुनाव में कांग्रेस के डॉ. शकील को मिले एक लाख ग्यारह हजार मत उनकी झोली में आएंगे। चुनाव की कमान संभाले बिस्फी के राजद विधायक डॉ. फैयाज अहमद भी इसी विश्वास के साथ क्षेत्र में कुलांचे भर रहे हैं। हालांकि यह आकलन कितना सही होगा, बताना कठिन है। चूंकि कांग्रेस ने राजद के साथ तालमेल कर सीट छोड़ दी, इस फैसले से क्षेत्र के कांग्रेसी बेहद नाराज हैं। आजादी के समय से ही इस क्षेत्र पर सीपीआई का अच्छा-खासा प्रभाव रहा है। चार बार सीट हथियाने वाली सीपीआई ने इस बार गठबंधन धर्म निभाते हुए जदयू प्रत्याशी गुलाम गौस को समर्थन दिया है। सौम्य स्वभाव वाले गौस के पास मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विकास और सीपीआई का समर्थन थाती के रूप में है। पिछले चुनाव में सीपीआई के टिकट पर खड़े डॉ. हेमचंद्र झा को 54 हजार से अधिक मत मिले थे। जदयू प्रत्याशी के पक्ष में यह दावा किया जा रहा है कि इसका बड़ा हिस्सा उन्हें मिल जाएगा। लड़ाई को तिकोना बनाने में मुस्लिम मतों का रुख अहम होगा।

मधुबनी के बारे में कुछ तथ्य
मधुबनी लोकसभा सीट की वर्तमान सीमा वर्ष 1976 में तय हुई थी। इससे पहले मधुबनी में लोकसभा का पूर्वी भाग भी शामिल था। हालांकि वर्ष 1976 के बाद पूर्वी हिस्से को अलग करके नया क्षेत्र झांझरपुर बना दिया गया था जबकि पश्चिम भाग को जयनगर लोकसभा क्षेत्र में शामिल कर लिया गया था। उस समय जयनगर जिले की भौगोलिक सीमा को मधुबनी नाम दिया गया। इस लोकसभा संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभाएं आती हैं, जिनमें से कोई आरक्षित नहीं है। वर्ष 2011 में हुए जनगणना के मुताबिक मधुबनी जिले की जनसंख्या 44,76,044 थी। जिले की अर्थव्यवस्था कृषि के अलावा निर्यात पर भी टिकी हुई है।
सतीश कुमार मिश्र

मधुबनी लोकसभा क्षेत्र
- इस लोकसभा क्षेत्र में कुल 16,26,927 मतदाता हैं।
- इस क्षेत्र में ब्राह्मण, मुस्लिम और यादव आबादी अधिक है। किसी प्रत्याशी की जीत-हार में इनकी भूमिका अव्वल रहती है।
- यह क्षेत्र कांग्रेस और वामपंथ का गढ़ रहा है। अब तक कांग्रेस ने छह और सीपीआई व सोशलिस्ट पार्टी ने भी छह बार इस सीट पर कब्जा जमाया है।
- पहली बार है जब कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है। सीपीआई ने भी गठबंधन के कारण जदयू के समर्थन में प्रत्याशी नहीं दिया है।

15वां लोकसभा चुनाव
पार्टी उम्मीदवार प्राप्त मत
भाजपा हुक्मदेव नारायण यादव 1,64,094
राजद अब्दुल बारी सिद्दीकी 1,54,167

अब तक के सांसद
2009, 1999 : हुक्मदेव नारायण यादव (यादव)
2004, 1998 : शकील अहमद (कांग्रेस)
1996 : चतुरानन मिश्र (भाकपा)
1989, 91 : भोगेंद्र झा (भाकपा)
1984 : अब्दुल हनान अंसारी (कांग्रेस)
1980 : भोगेंद्र झा (भाकपा) (उपचुनाव)
1980 : शफीकुल्ला अंसारी (कांग्रेस)
1977 : हुक्मदेव नारायण यादव (जनता पार्टी)
1971 : पं. जगननाथ मिश्र (कांग्रेस)
1967 : शिवचंद्र झा (सोशलिस्ट पार्टी)
1962 : योगेंद्र झा (सोशलिस्ट पार्टी)
1957, 52 : अनिरुद्ध प्रसाद सिंह (कांग्रेस)

2009 में मतदान
39.83% मधुबनी सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। वामपंथियों का भी इस पर कम सियासी दखल नहीं रहा है। कांग्रेस ने छह बार अपनी जीत दर्ज की है तो सीपीआई और सोशलिस्ट पार्टी ने भी यहां परचम लहराया है, लेकिन इस बार दोनों के अपने प्रत्याशी नहीं हैं।

Source: LH

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